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नज़्म
उड़ गया दुनिया से तू मानिंद-ए-ख़ाक-ए-रह-गुज़र
ता-ख़िलाफ़त की बिना दुनिया में हो फिर उस्तुवार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अपने हिस्से से ज़ियादा जो लिया तू ने तो अब
तू ख़िलाफ़त के न क़ाबिल है न हम हैं मामूर
शिबली नोमानी
नज़्म
मगर ख़िलाफ़त को क्या विलायत मिली हुई है
मज़ीद ये क्या अवाम ओ अशराफ़ की हिमायत मिली हुई है
शहराम सर्मदी
नज़्म
अगर तेरी तमन्ना है कि शायान-ए-ख़िलाफ़त हो
तो शौक़-ए-बंदगी-ए-वाहिद-ए-क़हहार पैदा कर