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नज़्म
फ़ुनून-ए-लतीफ़ा ख़ुदावंद के हुक्म-नामे, फ़रामीन
जिन्हें मस्ख़ करते रहे पीर-ज़ादे, जहाँ के अनासिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मैं ख़ुदावंद हूँ उस वुसअत-ए-बे-पायाँ का
मौज-ए-आरिज़ भी मिरी निकहत-ए-गेसू भी मिरी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़ुदावंद-ए-दो-आलम से वो ये बेवपार करते हैं
जो रक्खा ही नहीं रोज़ा उसे इफ़्तार करते हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
फ़ैसला यूँ लिखा
''ख़ुदावंद पहले कफ़न-चोर को अपनी रहमत में रखना कि वो आदमी ख़ूब था''
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
ख़ुदावंद मुझे तौफ़ीक़ दे मैं ऐसे ज़िंदा लफ़्ज़ लिक्खूँ
जो न लिक्खूँ मैं तो दुनिया बाँझ हो जाए