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नज़्म
तिरे दामन से हम ने क़ीमती लम्हात पाए हैं
ख़ुलूस-अाे-उनसियत के बे-बहा जज़्बात पाए हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
ख़ुलूस-ए-कार से मिलती है ज़िंदगी 'अज़्मत'
ख़ुलूस-ए-कार को रहबर बनाएँगे हम लोग
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
नज़्म
ऐसी हालत में किसी से झुक के मिलना है गुनाह
ये ख़ुलूस-ए-बे-महल करता है रूहों को सियाह