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नज़्म
अजमी ख़ुम है तो क्या मय तो हिजाज़ी है मिरी
नग़्मा हिन्दी है तो क्या लय तो हिजाज़ी है मिरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ुम, शीशे, जाम, झलकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बादा है नीम-रस अभी शौक़ है ना-रसा अभी
रहने दो ख़ुम के सर पे तुम ख़िश्त-ए-कलीसिया अभी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ुम-ए-साक़ी में जुज़ ज़हर-ए-हलाहल कुछ नहीं बाक़ी
जो हो महफ़िल में इस इकराम के क़ाबिल ठहर जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पूछो इन सरमाया-दारों से कि कब जागोगे तुम
या यूँही पीते रहोगे बे-मुरव्वत मय के ख़ुम
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मिरा कुछ भी नहीं इस ज़िंदगी के बादा-ख़ाने में
ये ख़ुम ये जाम ये शीशे ये पैमाने किसी के हैं
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
ख़ुम के ख़ुम तू भी लुंढाने की क़सम खा ले आज
देख ज़ाहिद कहीं रखियो न कसर होली में
ज़रीफ़ देहल्वी
नज़्म
तमाम-उम्र दिल-ए-ख़ुद-निगर की नज़्र हुई
अधूरे ख़्वाब हैं दामन में तिश्ना-लब बातें
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
नज़्म
अमजद नजमी
नज़्म
शराब-ए-हुस्न लुटाई है तू ने ख़ुम के ख़ुम
रहेगा कैफ़ से सरशार बादा-ख़्वार तिरा
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
दास्तान-ए-अहद-ए-पारीना है ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू
अब छलकता है ख़ुम-ओ-साग़र से इंसाँ का लहू
अख़्तर पयामी
नज़्म
शाइ'र-ए-हिन्दोस्ताँ ऐ शाइ'र-ए-जादू-बयाँ
हिन्द के ख़ुम-ख़ाना-ए-इरफ़ाँ के ऐ पीर-ए-मुग़ाँ