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नज़्म
आज कश्ती अम्न के अमवाज पर खेते हो क्यूँ
सख़्त हैराँ हूँ कि अब तुम दर्स-ए-हक़ देते हो क्यूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बख़्शते हैं आप दरिया कश्तियाँ खेते हैं हम
आप देते हैं मवाक़े' रिश्वतें लेते हैं हम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कश्ती-ए-दिल बहर-ए-ग़म की मौज में खेते रहो
अपने ही ख़ूँ के चराग़ाँ के मज़े लेते रहो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तूफ़ान में कश्ती खेते हैं कोहसार से टक्कर लेते हैं
हम जंग में सर दे देते हैं हम पाँव हटाना क्या जानें
शमीम करहानी
नज़्म
बुझे हुए कोएले और गीली लकड़ी चिंगारी नहीं पकड़ते
सोई हुई सर्द मोहब्बत ने करवट बदल ली है
इंजील सहीफ़ा
नज़्म
कोएले चार-दिन और दहक रहे हैं
पंखे मेरे दिल में लगे हैं मुझे अब भी सर्दी लगती है
नसरीन अंजुम भट्टी
नज़्म
मेरी ज़बान ने जलते कोएले की गवाही चख़ी
और मुंसिफ़ ने मेरी आवाज़ अपने तराज़ू से चुरा ली
अंजुम सलीमी
नज़्म
हार चुके हैं अपनी हिम्मत, डूब चुके हैं बहर-ए-फ़लक में
तारीकी के तूफ़ानों में अपनी कश्ती खेते खेते
रिफ़अत सरोश
नज़्म
तो अपना काम क्या है नाव अपनी खेते रहना है
उफ़ुक़ मेहराब दर मेहराब अपने द्वार फैलाए