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नज़्म
सहर के वक़्त जब ठंडी हवाएँ सरसराती हैं
चमन का रंग खिल जाता है कलियाँ मुस्कुराती हैं
शातिर हकीमी
नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कोई शिकारी बार बार बन में हमारे आए क्यों
चौकेंगे हम हज़ार बार कोई हमें डराए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
ये गाँव का मंज़र सन्नाटा और शाम की धुँदली तारीकी
इक शाम बहुत रंगीन मगर मुफ़्लिस की निगाहों में फीकी
नुशूर वाहिदी
नज़्म
ता-हद्द-ए-नज़र जब नज़रों में जन्नत के नज़ारे होते थे
बातों में किनाए होते थे नज़रों में इशारे होते थे