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नज़्म
ख़ुशा कि आज ब-फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा वो दिन आया
कि दस्त-ए-ग़ैब ने इस घर की दर-कुशाई की
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कि इक चालीस-साला तिफ़्ल की रोज़ा-कुशाई है
फ़रिश्ते इस पे हैराँ दम-ब-ख़ुद सारी ख़ुदाई है
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हिसार उन का हर आफ़त और मुसीबत से बचाता है
उन्ही के हिफ़्ज़ से होती रही मुश्किल-कुशाई और मसीहाई
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
इजाज़त लब-कुशाई की न हक़ फ़रियाद करने का
ख़ुद अपने ही वतन में हो गई है बे-ज़बाँ उर्दू
रहबर जौनपूरी
नज़्म
न आँख उठाने की मोहलत न लब-कुशाई की ताब
निगाह-ओ-दिल की असीरी ख़मोशियों का अज़ाब