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नज़्म
हर आन टूट पड़ता है रोटी के ख़्वान पर
जिस तरह कुत्ते लड़ते हैं इक उस्तुख़्वान पर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आई तब रिश्वत की चिड़िया पँख अपने खोल कर
वर्ना मर जाते मियाँ कुत्ते की बोली बोल कर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
उजड़ी मंडी, लाग़र कुत्ते, टूटे खम्बे ख़ाली खेत
क्या इस नहर के पुल के आगे ऐसा शहर-ए-ख़मोशाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कुत्ते बिल्ली ओ गधे की भी ख़ुशामद कीजे
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
देखो हर साल आएगी माह-ए-मई की ये यकुम
सुनते हैं सीधी नहीं होती कभी कुत्ते की दुम
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
घड़ी की टिक-टिक बोल रही है रात के शायद एक बजे हैं
बटला हाउस की एक गली में मोटे कुत्ते भौंक रहे हैं
आसिम बद्र
नज़्म
कुत्ते अचानक चौंक कर भौंके दुबक कर सो गए
बे-रस चचोड़ी हड्डियों की लज़्ज़तों में खो गए