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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ग़म आप बड़ी इक ताक़त है ये ताक़त बस में कर लेना
हो अज़्म तो लौ दे उठता है हर ज़ख़्म सुलगते सीने का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
बेची लाज भी अपने हुनर की इस आबाद ख़राबे में
देखो हम ने कैसे बसर की आबाद ख़राबे में