आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "lashkar-e-aql-o-nigaah"
नज़्म के संबंधित परिणाम "lashkar-e-aql-o-nigaah"
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
निगाह को थी मगर मीर-ए-कारवाँ की तलाश
नज़र जो उट्ठी तो देखा कि एक मर्द-ए-फ़क़ीर
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
आदमी को 'अक़्ल-ओ-‘इल्म-ओ-आगही देता है कौन
चाँद को तारों को आख़िर रौशनी देता है कौन
मेहदी प्रतापगढ़ी
नज़्म
होश-ओ-हवास-ओ-अक़ल-ओ-ख़िरद जोश-ओ-वलवले
सब कहते हैं पुकार के लो अब तो हम चले
नसीम फ़ातिमा नज़र लखनवी
नज़्म
है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू
मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू