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नज़्म
वो साहिरा कि लश्कर-ए-जमाल-ए-बा-कमाल उस के साथ था
वो साहिरा कि क़त्ल-ए-आम के तमाम असलहों से लैस थी
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
दरस-ए-सुकून-ओ-सब्र ब-ईं एहतिमाम-ए-नाज़
निश्तर-ज़नी-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फिर दिल में दर्द सिलसिला-ए-जुम्बा है क्या करूँ
फिर अश्क गर्म-ए-दावत-ए-मिज़्गाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तबस्सुम क़हक़हे शादाबी रुख़सार-ओ-लबओ-मिज़्गाँ की ताबानी
मिरे शे'र-ओ-सुख़न के वास्ते इक्सीर-ए-आ’ज़म है
अहमद फ़ाख़िर
नज़्म
ज़र्द परचम उड़ाता हुआ लश्कर-ए-बे-अमाँ गुल-ज़मीनों को पामाल करता रहा
और हवा चुप रही
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
अभी हर दुश्मन-ए-नज़्म-ए-कुहन के गीत गाना है
अभी हर लश्कर-ए-ज़ुल्मत-शिकन के गीत गाना है