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नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ख़ुदा ने जब शिफ़ा तक़्सीम की सारे ज़माने में
तुम्हारी उँगलियों पर उस ने अपने हाथ से लिक्खा
फ़ाख़िरा बतूल
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
क्या रात थी वो जी चाहता है उस रात पे लिक्खें अफ़साना
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दिया रोना मुझे ऐसा कि सब कुछ दे दिया गोया
लिखा कल्क-ए-अज़ल ने मुझ को तेरे नौहा-ख़्वानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लब-ए-लालीं पे लाखा है न रुख़्सारों पे ग़ाज़ा है
जबीं-ए-नूर-अफ़्शाँ पर न झूमर है न टीका है