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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मंज़ूर था जो माँ की ज़ियारत का इंतिज़ाम
दामन से अश्क पोंछ के दिल से किया कलाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
तुम्हें रुस्वा सर-ए-बाज़ार-ए-आलम हम भी देखेंगे
ज़रा दम लो मआल-ए-शौकत-ए-जम हम भी देखेंगे