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नज़्म
माना कि उस के ज़ुल्म-ओ-सितम से हूँ नीम-जाँ
फिर भी मैं सख़्त जाँ हूँ पहुँच जाऊँगा वहाँ
शाहिद कबीर
नज़्म
मैं अब मानता हूँ कि तू ने रवानी में अपनी बहुत दूर रौज़न से धुँदले
सितारे भी देखे हैं लाखों