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नज़्म
इस सुकूत-ए-आरज़ी पर ख़ुश न हो जाना कहीं
तू ने मद्द-ओ-जज़्र मौजों का अभी देखा नहीं
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
इफ़्तेख़ार जालिब
नज़्म
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
बाँहों में लम्हा लम्हा सिमटने की काविशें
सीने के जज़्र-ओ-मद में समुंदर सा इज़्तिराब
हिमायत अली शाएर
नज़्म
कि ताब इस जज़्र-ओ-मद की फ़ितरत-ए-इंसाँ नहीं लाई
बढ़ा जोश इस का बढ़ कर साहिल-ए-अफ़्लाक तक पहुँचा
नज़्म तबातबाई
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जिस में कि ख़ूब-ओ-ज़िश्त का मद्द-ओ-जज़र है साफ़ साफ़
मंज़र-ए-दोज़ख़-ओ-बहिश्त पेश-ए-नज़र है साफ़ साफ़