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नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मगर देख मुझ को कि मैं ने यहाँ ठीक नौ साल तक
फूल काढ़े हैं ख़्वाबों के बिस्तर पे लेकिन