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नज़्म
तुम रूठ चुके दिल टूट चुका अब याद न आओ रहने दो
इस महफ़िल-ए-ग़म में आने की ज़हमत न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जो साए दूर चराग़ों के गिर्द लर्ज़ां हैं
न जाने महफ़िल-ए-ग़म है कि बज़्म-ए-जाम-ओ-सुबू
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न दोस्तो बे-फ़ैज़ हुई
गुल करो शम'एँ चराग़ों की लवें ज़ख़्मी करो
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
नज़्म
जमी हुई है अभी महफ़िल-ए-शबाना-ए-नाज़
अभी ज़बान-ए-मोहब्बत पे है फ़साना-ए-नाज़
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
वो मेरा यूसुफ़-ए-सानी वो शम-ए-महफ़िल-ए-इश्क़
हुई है जिस की उख़ुव्वत क़रार-ए-जाँ मुझ को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या ख़बर तुझ को जवाँ हो के तिरा ताज-महल
रौनक़-ए-महफ़िल-ए-हस्ती को दो-बाला कर दे