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नज़्म
ख़ुफ़्ता-ख़ाक-ए-पय सिपर में है शरार अपना तो क्या
आरज़ी महमिल है ये मुश्त-ए-ग़ुबार अपना तो क्या
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहीं तो कारवान-ए-दर्द की मंज़िल ठहर जाए
किनारे आ लगे उम्र-ए-रवाँ या दिल ठहर जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जो चलते हैं उन्हीं रस्तों पे जो मंज़िल नहीं रखते
ये मजनूँ अपनी नज़रों में कोई महमिल नहीं रखते
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
तिफ़्ली में आरज़ू थी किसी दिल में हम भी हों
इक रोज़ सोज़-ओ-साज़ की महफ़िल में हम भी हों
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गरमाए तहज़ीब की महफ़िल चमकाया अफ़्साने को
रंग बिखेरा आँचल आँचल रूप का मान बढ़ाने को
हुरमतुल इकराम
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
और इस के ब'अद अगर तारीक है शब दूर मंज़िल है
तो करते हैं तवाफ़ इस का वो मजनूँ जिन की महमिल है