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नज़्म
मैं कि मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त का पुराना मय-ख़्वार
महफ़िल-ए-हुस्न का इक मुतरिब-ए-शीरीं-गुफ़्तार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मय भी है साक़ी भी है फिर लुत्फ़-ए-मय-ख़ाना नहीं
मेरी बातों को समझ ले ऐसा दीवाना नहीं
माया खन्ना राजे बरेलवी
नज़्म
जाम पुर-शोर से गिर जाने दो नाकाम तमन्नाओं की मय
फ़र्श-ए-मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त पे उलट दो साग़र
ज़ाहिदा ज़ैदी
नज़्म
किसी पर बंद होने का नहीं मय-ख़ाना-ए-उलफ़त
चले आओ खुला रहता है मय-ख़ाना कनहैया का
जूलियस नहीफ़ देहलवी
नज़्म
न सहबा हूँ न साक़ी हूँ न मस्ती हूँ न पैमाना
मैं इस मय-ख़ाना-ए-हस्ती में हर शय की हक़ीक़त हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम यूँही ज़िद में हुए ख़ाक-ए-दर-ए-मय-ख़ाना
मुझ को ये ज़ोम कि मैं ने तुम्हें टोका कब था
शाज़ तमकनत
नज़्म
सर ले के हथेली पर उभरी थी जो दुनिया में
उस क़ौम को ले डूबा शुग़्ल-ए-मै-ओ-मय-ख़ाना
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
निगाह-ए-मस्त से उस की बहक जाती थी कुल वादी
हवाएँ पर-फ़िशाँ रूह-ए-मय-ओ-मय-ख़ाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
शराब-ए-शोर से लबरेज़ है दुनिया का पैमाना
हरीफ़-ए-दीन-ओ-दानिश है मज़ाक़-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना