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नज़्म
दिए चारों तरफ़ हर जा फ़रोज़ाँ देखता हूँ मैं
नज़र पड़ती है जिस पर भी दरख़्शाँ देखता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
मिरी जाँ गो तुझे दिल से भुलाया जा नहीं सकता
मगर ये बात मैं अपनी ज़बाँ पर ला नहीं सकता