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नज़्म
क्या ख़बर थी कि तिरा प्यार भी धोका होगा
इक ज़रूरत ने किया था तुझे मजबूर-ए-वफ़ा
नियाज़ गुलबर्गवी
नज़्म
जो सरापा नाज़ थे हैं आज मजबूर-ए-नियाज़
ले रहा है मय-फ़रोशान-ए-फ़रंगिस्तान से पार्स
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल में है तूफ़ान बरपा लब पे आ सकता नहीं
किस क़दर मजबूर-ए-ग़म है आह ये जान-ए-हज़ीं
साक़िब कानपुरी
नज़्म
वो कहीं मजबूर-ए-मुतलक़ है कहीं मुख़्तार-ए-कुल
हुस्न का बे-दाम बंदा वर्ना है शाह-ए-जहाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
मजबूर-ए-मोहब्बत की दुनिया जब आस के बल पर जीती है
उम्मीद की इक मासूम झलक जब चाक-ए-गरेबाँ सीती है
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
नज़्म
है शिकस्त अंजाम ग़ुंचे का सुबू गुलज़ार में
सब्ज़ा ओ गुल भी हैं मजबूर-ए-नमू गुलज़ार में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम तो मजबूर थे इस दिल से कि जिस में हर दम
गर्दिश-ए-ख़ूँ से वो कोहराम बपा रहता है