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नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क़ुदरत के सब छोटे बड़े क़ानून हैं यकसाँ मगर
पर्दे पड़े हैं जा-ब-जा छनती नहीं जिन से नज़र
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
उल्टे तवे की रोटी साथ में खट्टा मीठा साग
मक्खन की डलियों में जैसे माँ के प्यार का राग