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नज़्म
अपने हाथों में बहाराँ का उठाए हुए साज़
आज भी है मिरी महफ़िल में बला-नोश 'मजाज़'
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
क्या बताऊँ मैं भड़क उठते थे क्यूँकर दिल के दाग़
जब चमन करता था रौशन ताज़ा कलियों के चराग़