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नज़्म
सत्यपाल आनंद
नज़्म
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो हिकमत नाज़ था जिस पर ख़िरद-मंदान-ए-मग़रिब को
हवस के पंजा-ए-ख़ूनीं में तेग़-ए-कार-ज़ारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़फ़र-मंदों के आगे रिज़्क़ की तहसील की ख़ातिर
कभी अपना ही नग़्मा उन का कह कर मुस्कुराना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
दौलत के फ़रेबी बंदों का ये किब्र और नख़वत मिट जाए
बर्बाद वतन के महलों से ग़ैरों की हुकूमत मिट जाए
आमिर उस्मानी
नज़्म
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कैसे बहकी हुई नज़रों के तअय्युश के लिए
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे