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नज़्म
ख़ातून बोलीं इतना तो ख़ुद मानती हूँ मैं
मैं बेवा होने वाली हूँ ये जानती हूँ मैं
सय्यद हशमत सुहैल
नज़्म
ये बस वो है कि बस हो जाए जब मोटर तो बनती है
सड़क पर रूठ जाए तो बड़ी मुश्किल से मनती है