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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझे इक लड़का आवारा-मनुश आज़ाद सैलानी
मुझे इक लड़का जैसे तुंद चश्मों का रवाँ पानी
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
थी वो माँ अहल-ए-दिल और नेक-मनुश नेक-निहाद
हँस के फ़रमाया मिरी जाँ ये नसीहत रख याद
इस्माइल मेरठी
नज़्म
दिल की बे-सूद तड़प जिस्म की मायूस पुकार
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
लिल्लाह हबाब-ए-आब-ए-रवाँ पर नक़्श-ए-बक़ा तहरीर न कर
मायूसी के रमते बादल पर उम्मीद के घर तामीर न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे
जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे