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नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मक़ाम-ए-मर्ग-ए-ताज़गी मक़ाम-ए-मर्ग-ए-नग़्मगी
हवा नमी सफ़ेद धूप ज़र्द फूल देखते ही देखते गुज़र गए
बलराज कोमल
नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
मिरी नज़रों से ओझल अब मक़ाम-ए-जोहद-ए-हस्ती है
शौकत परदेसी
नज़्म
मक़ाम-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ को तू ने फ़ाश किया
जुमूद-बस्ता ग़ुलामी को पाश-पाश किया
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
मक़ाम-ए-इंस-ओ-‘इरफ़ाँ में रहें आज़ाद हम दोनों
मिसालन नित नई रस्में करें ईजाद हम दोनों
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
मक़ाम-ए-सिदरा-ओ-तूबा की क्या ख़बर तुम को
अभी तो चाँद सितारों के दरमियाँ तुम हो