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नज़्म
''कोई माशूक़ ब-सद-शौकत-ओ-नाज़ आता है
सुर्ख़ बैरक़ है समुंदर में जहाज़ आता है''
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़िंदगी को नागवार इक सानेहा जाने हुए
बज़्म-ए-किबर-ओ-नाज़ में फ़र्ज़ अपना पहचाने हुए
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
जहान-ए-क़ुद्स का तू एक फ़िरदौसी फ़साना है
तुझे मिस्र-ए-जमाल-ओ-नाज़ की इक साहिरा कहिए
नय्यर वास्ती
नज़्म
बज़्म-ए-हुस्न-ओ-नाज़ की दिलदारियाँ भी सो गईं
हिज्र की रातों की वो बे-ख़ूबियाँ भी हो गईं
अख़्तर पयामी
नज़्म
गूँज उट्ठा तेरे नग़्मों से हरीम-ए-हुस्न-ओ-नाज़
आज तक महफ़ूज़ है हर दिल में तेरा सोज़-ओ-साज़