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नज़्म
दिनों को हफ़्तों में ढालने का नहीं कोई मश्ग़ला
ब-जुज़ ये कि वादियों में सदा की दूरी पे बजने वाले
तनवीर मोनिस
नज़्म
हुरमतुल इकराम
नज़्म
ये मश्शाता-ए-ज़िंदगी इतनी चालाक क्यों है
मरे और तिरे दरमियाँ नौ बरस जिस ने ला कर बिछाए