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नज़्म
मसीह ओ ख़िज़्र की कहने को कुछ कमी ही नहीं
गुज़र भी जा कि तिरा इंतिज़ार कब से है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
मसीह-ए-दस्त-ओ-क़लम से निकलें तो फिर ये अल्फ़ाज़ बोलते हैं
यही मुसव्विर यही हैं बुत-गर यही हैं शायर
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
उसे इत्तिबा-ए-मसीह ने वो अजीब दस्त-ए-शिफ़ा दिया
जो गिरे थे उन को उठा दिया जो मरे थे उन को जला दिया
इक़बाल सुहैल
नज़्म
मौत की परछाइयों में जैसे रौशन ज़िंदगानी की लकीर
मुनकिरों के दरमियाँ जैसे मसीह
साहिर होशियारपुरी
नज़्म
हुरूफ़ लब से जो निकलें तो दें पयाम-ए-मसीह
हमारी सम्तों को अम्न-ओ-अमाँ मयस्सर हो