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नज़्म
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
लाख बैठे कोई छुप-छुप के कमीं-गाहों में
ख़ून ख़ुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तुर्बत है कहाँ उस की मस्कन था कहाँ उस का
अब अपने सुख़न-परवर ज़ेहनों में सवाल आया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सिदक़-ए-ख़लील भी है इश्क़ सब्र-ए-हुसैन भी है इश्क़!
म'अरका-ए-वजूद में बद्र ओ हुनैन भी है इश्क़!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो मलका है ख़िराज उस ने लिए हैं बोस्तानों से
बस इक मैं ने ही अक्सर की हैं ना-फ़रमानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुझ को मिस्ल-ए-तिफ़्लक-ए-बे-दस्त-ओ-पा रोता है वो
सब्र से ना-आश्ना सुब्ह ओ मसा रोता है वो