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नज़्म
मगर इन में मिरे उस्ताद-ए-देरीना बहुत कम थे
जो दो इक थे भी वो मसरूफ़-ए-सद-अफ़्कार-ए-पैहम थे
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
फ़लक पर अंजुम-ए-ताबाँ थे मसरूफ़-ए-दरख़शानी
बरसता था ज़मीं पर आसमाँ से नूर का पानी