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नज़्म
न आए मास्टर जिस दिन पढ़ाने मेरे दर्जे में
ज़रा सी देर को उस दिन मेरा दिल शाद होता है
मुश्ताक़ अहमद नूरी
नज़्म
हमारी तरह शायद मास्टर साहब भी हैं भूके
अभी झल्ला के दो लड़कों को वो भी मार बैठे हैं
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
मेहरबाँ हों मास्टर ऐसी मिरी क़िस्मत नहीं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
अलक़मा शिबली
नज़्म
ऐ क़लम क्या कहूँ मैं सेहर-बयानी तेरी
हाल-ए-दिल अपना सुनाता हूँ ज़बानी तेरी
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
रंग-ए-चमन बना है गरेबान-ए-सुब्ह-ए-ईद
दामान-ए-गुल से कम नहीं दामान-ए-सुब्ह-ए-ईद
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
ऐ अंदलीब-ए-गुलशन मैं हूँ तिरा फ़िदाई
इस सौत-ए-जाँ-फ़ज़ा की अल्लह रे दिल-रुबाई