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नज़्म
उमीद-ओ-बीम के झगड़े मिटा देता ज़माने से
ख़ुदी का देवता बन कर ख़ुदा का तर्जुमाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मता-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-ज़िंदगी पैमाना ओ बरबत
मैं ख़ुद को इन खिलौनों से भी अब बहला नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जनाब-ए-'फ़ैज़' मताअ'-ए-हयात-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर
ज़बाँ पे बारे ख़ुदाया ये किस का नाम आया
मुस्लिम शमीम
नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
जौन एलिया
नज़्म
मताअ'-ए-दस्त-ए-सबा हो कि नक़्श-ए-फ़र्यादी
हर एक ज़ख़्म में दर्द-ए-अवाम की ख़ुशबू
मसूद मैकश मुरादाबादी
नज़्म
रहे न मुसहफ़-ए-हस्ती कुदूरतों से ग़लीज़
मताअ'-ए-फ़े'ल-ओ-सुख़न लग़्ज़िशों से पाक रहे