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नज़्म
तुम ने उस के हर अदा से रंग की मौजें निचोड़ी हैं
तुम्हें तो टूट कर चाहा गया चेहरों के मेले में
मोहसिन नक़वी
नज़्म
यहाँ पर शोख़ियों की बे-कराँ मौजें बहाईं हैं
यहाँ बज़में सजाई हैं यहाँ धूमें मचाई हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
सिलसिला हस्ती का है इक बहर-ए-ना-पैदा-कनार
और इस दरिया-ए-बे-पायाँ की मौजें हैं मज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर मौज-ए-रवाँ पर लहराती हँसती सी रुपहली इक धारी
जैसे किसी चंचल के तन पर लहराए बनारस की सारी
नज़ीर बनारसी
नज़्म
उन्हें मुख़्तार बन कर बेकसी के ख़ून की मौजें
हिसार-ए-मर्ग ने महसूर कर लीं जंग जो फ़ौजें
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
ग़ज़ब की तीरगी है रास्ता देखा नहीं जाता
हवा के शोर में दरिया की मौजें बढ़ती जाती हैं