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नज़्म
थी नज़र हैराँ कि ये दरिया है या तस्वीर-ए-आब
जैसे गहवारे में सो जाता है तिफ़्ल-ए-शीर-ख़्वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नहीं तेशा तो सर टकरा के जू-ए-शीर लाएँगे
बयाबान-ए-जुनूँ में जानशीन-ए-कोहकन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
जैसे गहवारे में सो जाता है तिफ़्ल-ए-शीर-ख़्वार
ज़ीस्त आग़ोश-ए-अजल में इस तरह सो जाएगी
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
मेरी सूरत को तरसता है जो तिफ़्ल-ए-शीर-ख़ार
हो चुके हैं इस के अब्बा मुल्क-ओ-मिल्लत पर निसार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
अब आओ ये भी कर देखें तो जीने का मज़ा आए
कोई खिड़की खुले इस घर की और ताज़ा हवा आए