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नज़्म
आसमाँ जान-ए-तरब को वक़्फ़-ए-रंजूरी करे
सिंफ़-ए-नाज़ुक भूक से तंग आ के मज़दूरी करे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
करते हैं मज़दूरी बच्चे जाते नहीं इस्कूल
इस में उन की भूल नहीं है ये है बड़ों की भूल
रियाज़ अहमद क़ादरी
नज़्म
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाह-राहों पे ग़रीबों का लहू बहता है