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नज़्म
इन किताबों ने बड़ा ज़ुल्म किया है मुझ पर
इन में इक रम्ज़ है जिस रम्ज़ का मारा हुआ ज़ेहन
जौन एलिया
नज़्म
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कट मरा नादाँ ख़याली देवताओं के लिए
सुक्र की लज़्ज़त में तू लुटवा गया नक़्द-ए-हयात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जावेदाँ मेरी न मर्ग-ए-ना-गहाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिए दिखाते हैं ये भूली-भटकी रूहों को
मज़ा भी आता था मुझ को कुछ उन की बातों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कुछ बता उस सीधी-साधी ज़िंदगी का माजरा
दाग़ जिस पर ग़ाज़ा-ए-रंग-ए-तकल्लुफ़ का न था