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नज़्म
आ गया दिल में तिरे 'मीर-तक़ी-मीर' का सोज़
दे गया दर्द की लज़्ज़त तुझे 'दिल-गीर' का सोज़
हबीब जौनपुरी
नज़्म
मुहर थी वो किसी तारीक निहाँ-ख़ाने की
आज तक मिल न सकी बार-ए-तमन्ना से नजात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
आ भी जा, ताकि मिरे सज्दों का अरमाँ निकले
आ भी जा, कि तिरे क़दमों पे मिरी जाँ निकले