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नज़्म
रंज रक्खा था मेहन रक्खा था ग़म रक्खा था
किस को परवाह था और किस में ये दम रक्खा था
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
बाद-ए-बहारी बन के चलेंगे सरसों बन कर फूलेंगे
ख़ुशियों के रंगीं झुरमुट में रंज-ओ-मेहन सब भूलेंगे
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
इस वतन के वास्ते क्या क्या सहे रंज-ओ-मेहन
नाज़ के क़ाबिल है उन की जाँ-निसारी का चलन
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
देख कर बश्शाश हो जाता है क़ल्ब-ए-पुर-मेहन
फूल गुड़हल का है या आवेज़ा-ए-गोश-ए-चमन
सय्यद मोहम्मद हादी
नज़्म
देखते हैं आज जिस को शाद है आज़ाद है
क्या तुम्हीं पैदा हुए रंज-ओ-मेहन के वास्ते
कुंवर प्रताप चंद्र आज़ाद
नज़्म
बाग़-ए-वतन में यासमीं है एक यासमन
दोनों के बू से मिटते हैं रंज-ओ-ग़म-ओ-मेहन