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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सहर-दम झुटपुटे के वक़्त रातों के अँधेरे में
कभी मेलों में नाटक-टोलियों में उन के डेरे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मेलों ठेलों बाजों गांजों बारातों की धूमें थीं
आज कोई देखे तो समझे, ये तो सदा बयाबाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मेलों के वास्ते जो तलब हो तो ख़ूब दें
क़ौमी जो कोई काम हो तो नाम भी न लें
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सब पट्टा तोड़ के भागेंगे मुँह देख अजल के भालों के
क्या डब्बे मोती हीरों के क्या ढेर ख़ज़ाने मालों के
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कभी वो चाँदनी में अपना यूँ ही घूमते रहना
कभी वो चाय की मेज़ों पे घंटों बैठना सब का
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
ज़मीं की क़ुव्वत-ए-तख़्लीक़ के ख़ुदा-वंदो
मिलों के मुंतज़िमों सल्तनत के फ़रज़ंदो