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नज़्म
मुज़फ़्फ़र अबदाली
नज़्म
महाज़-ए-जंग से हरकारा तार लाया है
कि जिस का ज़िक्र तुम्हें ज़िंदगी से प्यारा था
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ने मजाल-ए-शिकवा है ने ताक़त-ए-गुफ़्तार है
ज़िंदगानी क्या है इक तोक़-ए-गुलू-अफ़्शार है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं
क्या समझती हो कि तुम को भी भुला सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अब उस के बा'द सुब्ह है और सुब्ह-ए-नौ 'मजाज़'
हम पर है ख़त्म शाम-ए-ग़रीबान-ए-लखनऊ