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नज़्म
ऐ उरूस-ए-इज़्ज़-ओ-जल फ़र्ख़न्दा रो ताबिंदा खो
तू इक ऐसे हुजरा-ए-शब से निकल कर आई है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ऐ उरूस-ए-इज़्ज़-ओ-जल फ़र्ख़न्दा रो ताबिंदा खो
तू इक ऐसे हुजरा-ए-शब से निकल कर आई है