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नज़्म
दोस्त मिला था तुझ को कैसा हैफ़ इतना भी याद नहीं
जान फ़िदा करता था जिस पर दिल में उस की याद नहीं
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
जो आता था सो वो हो रहता था उसी घर का
ज़मीं की नाफ़ है का'बा है बत्न-ए-मादर का
मोहम्मद अली तिशना
नज़्म
मोहब्बत ज़िंदाबाद अब तक शगुफ़्ता दिल हैं जिस ढब से
इसी ढब से रहें ना-वाक़िफ़-ए-फ़रियाद हम दोनों
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
अगर नहूसत की जान है वो तो बंदा ईमान-ए-मुफ़्लिसी है
इसी लिए एक दूसरे से हमें मोहब्बत है वालिहाना