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नज़्म
पूछ न क्या लाहौर में देखा हम ने मियाँ-'नज़ीर'
पहनें सूट अंग्रेज़ी बोलें और कहलाएँ 'मीर'
हबीब जालिब
नज़्म
ये भटकती हुई रूहें ये नशेब और फ़राज़
तेरी महफ़िल में फ़रोज़ाँ न हुई शम्अ'-ए-नियाज़
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
मैं औरत हूँ तख़्लीक़-ए-जहाँ का इक सबब भी हूँ
मैं बिल्कुल बे-तलब हूँ और ज़माने की तलब भी हूँ
ज़ेबुन्निसा ज़ेबी
नज़्म
जबीन-ए-ज़ीस्त पे मर्क़ूम है मिरी आवाज़
कि तू ने ज़िंदा किए हुस्न-ओ-इश्क़ के ए'जाज़
मयकश अकबराबादी
नज़्म
एक शोख़ी-भरी दोशीज़ा-ए-बिल्लोर-जमाल
जिस के होंटों पे है कलियों के तबस्सुम का निखार
ज़िया जालंधरी
नज़्म
तिरी पलकें तिरी आँखें तिरे अबरू की लचक
तिरी क़ामत की दराज़ी तिरी ज़ुल्फ़ों की महक
नियाज़ गुलबर्गवी
नज़्म
अपने पिंदार-ए-ख़ुदी से मुन्फ़इल हूँ 'मज़हरी'
मैं ज़ुहूर-ए-इख़्तिलाल-ए-आब-ओ-गिल हूँ 'मज़हरी'
जमील मज़हरी
नज़्म
हड़ताल करने से न टलो मैं नशे में हूँ
ऐ ग़ैर-मुलकियों की कलो मैं नशे में हूँ