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नज़्म
''लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा मैं भी देख लूँ
किस किस की मोहर है सर-ए-महज़र लगी हुई''
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आ कि तुझ को साहिब-ए-महर-ओ-वफ़ा करते हैं हम
ले ख़ुद अपनी जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ अता करते हैं हम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की
हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मोहर जब लगती है होंटों पे ज़बाँ पर ताले
क़ैद जब होती है सीने में दिलों की धड़कन