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नज़्म
सुनते हैं मज़दूर से मालिक का मोहरा पिट गया
''एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था वो भी मिट गया''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
दूसरे दोहरे के रस्ते में तीसरा खेल का मुहरा है
तीसरा तिहरा जो है उस का सब से उजागर चेहरा है
मीराजी
नज़्म
''लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा मैं भी देख लूँ
किस किस की मोहर है सर-ए-महज़र लगी हुई''
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शहपर-ए-बुलबुल पे खींची जाए तस्वीर-ए-शिग़ाल!
मोतियों पर सब्त हो तूफ़ान की मोहर-ए-जलाल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हर इक कशीद है सदियों के दर्द ओ हसरत की
हर इक में मोहर-ब-लब ग़ैज़ ओ ग़म की गर्मी है