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नज़्म
कैसे मैं छूई-मूई सी बीच सड़क उस शाम गिरी थी
मेरी चादर तेज़ हवा से दूर तलक उड़ती ही गई थी
शाज़िया मुफ़्ती
नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दिगर शाख़-ए-ख़लील अज़ ख़ून-ए-मा नमनाक मी गर्दद
ब-बाज़ार-ए-मोहब्बत नक़्द-ए-मा कामिल अय्यार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं ख़ुद मैं हसन कूज़ा-गर पा-ब-गिल ख़ाक-बर-सर बरहना
सर-ए-चाक ज़ोलीदा-मू सर-ब-ज़ानू