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नज़्म
रेशम की नर्म निहाली पर सौ नाज़-ओ-अदा से हँस हँस कर
पहलू के बीच मचलता हो तब देख बहारें जाड़े की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुकम्मल पा लिया उस को जो शह-रग में मचलता था
मुबारकबाद तो दे दो वो मेरा हो गया अब की
असरा रिज़वी
नज़्म
धुआँ आँखों से उठता है उजाला दिल में होता है
मचलता है जो दिल में और होंटों तक नहीं आता
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
नाज़ुक-मिज़ाज बन कर वो रूठना मचलना
सेहन-ए-मकाँ में दिन भर वो कूदना-उछलना