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नज़्म
सँभाल सको तो मड़ाई कर लो फिर से
अक्सर पुरानी जिल्द नए सफ़्हों में बे-मआ'नी बे-रौनक़ सी मा'लूम होती है
दिव्या महेश्वरी
नज़्म
मुद्दई तू ने अभी देखा नहीं शाइ'र का दिल
जल्वा-हा-ए-रंग-ओ-बू होते हैं जिस में मुंतक़िल
अमजद नजमी
नज़्म
मुद्द'ई 'इश्क़-ए-हक़ीक़ी का ये रहता है मगर
दौलत-ए-हुस्न-ए-मजाज़ी का ख़रीदार भी है
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
बया पैदा ख़रीदा रास्त जान-ए-ना-वान-ए-रा
पस अज़ मुद्दत गुज़ार उफ़्ताद बर्मा कारवाने रा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
अक़्ल जिस से सर-ब-ज़ानू है वो मुद्दत इन की है
सरगुज़िश्त-ए-नौ-ए-इंसाँ एक साअ'त उन की है